बुद्धि और जीवी दोनों भाई, जग की बानी बांचे जाएँ
बादल, सूर्य , आकाश ये धरती , उनको अपनी व्यथा कहायें
कैसी है इस पल की विपदा , किसी को कुछ आये न सुझाये
इसकी चिट्ठी उसको पहुंचे , इसका न्योता कौवा ले जाये
माघ महीना बसंत तक पसरा , बेला बहार विराग मनाये
गर्मी की जो रुत आ जाये , टिके यहीं बिन मूल चुकाए
सावन रूठा , भादो भीगा , दोनों की गजब पकड़म पकड़ाई
मोर फिरे हैं बिफरे बिफरे , बदरा देर से प्रसंग रुत लाये
जंगल में पहले आग लगी फिर पेड़ पहाड़ सब नदी बन जाएँ
पल में उफने , पल में बिसरे , सागर अपनी चाल न पाये
सब अंबर को रहे लताड़े , वह उल्टा धरती को कोसे
इसकी चिट्ठी उसको पहुंचे, इसका न्योता कौवा ले जाये
मानव जो ये गाथा कहावे , Internet पर लिख लिख मनन भरमाये
climate का तो change हो गया , तेरी बुद्धि कब वापस आवे
बादल, सूर्य , आकाश ये धरती , उनको अपनी व्यथा कहायें
कैसी है इस पल की विपदा , किसी को कुछ आये न सुझाये
इसकी चिट्ठी उसको पहुंचे , इसका न्योता कौवा ले जाये
माघ महीना बसंत तक पसरा , बेला बहार विराग मनाये
गर्मी की जो रुत आ जाये , टिके यहीं बिन मूल चुकाए
सावन रूठा , भादो भीगा , दोनों की गजब पकड़म पकड़ाई
मोर फिरे हैं बिफरे बिफरे , बदरा देर से प्रसंग रुत लाये
जंगल में पहले आग लगी फिर पेड़ पहाड़ सब नदी बन जाएँ
पल में उफने , पल में बिसरे , सागर अपनी चाल न पाये
सब अंबर को रहे लताड़े , वह उल्टा धरती को कोसे
इसकी चिट्ठी उसको पहुंचे, इसका न्योता कौवा ले जाये
मानव जो ये गाथा कहावे , Internet पर लिख लिख मनन भरमाये
climate का तो change हो गया , तेरी बुद्धि कब वापस आवे
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